Saturday, June 30, 2012

This month I completed and got the book published o Ms Sadhna Dhand who is 53 Year old suffering from Osteogenesis Congenita Imperfecta .. This is a rare disease and she is the one among a few survivors in the world with this disease. How she thinks about .. what were her problems in the chilhood and how others react to her .. are all about in this book .. 

Sunday, May 27, 2012

भीषण गर्मी में
शब्द भी
पिघल
रहे हैं ..

Saturday, May 12, 2012

सुर्खियो में बने रहने के लिये केवल विवादास्पद होना ही जरूरी नहीं है बल्कि आपमें कोई न कोई तत्व होना ही चाहिये .. वरना आप तथाकथित महान भी कहलाने लायक नहीं रह पायेंगे ..
मुझे तो बंद घड़ी से भी कोई शिकायत नहीं है .. कि .. वह भी तो 24 घंटे में 2 बार .. सही समय बताती है ..
ये हकीकत है / कि / मेरे चारो तरफ  / जिधर भी नजर घुमाता हूं  / महान या अत्यंत महान ही दिखलाई पड़ते हैं  / मैं सोच रहा था  /  कि  /  सपने में भी / शायद  /  इसलिये / सभी का स्तुति गान चालू रखता हूं ..
सदैव परम आदरणीय, प्रातः स्मरणीय,अत्यंत सम्माननीय, अत्यंत विवेकशील, अत्यंत मृदु भाषी, अत्यंत पूजनीय, जैसे शब्द-अलंकरण से किसी की भी अवरोधक या प्रतिरोधक क्षमता का क्या क्षीण हो जाना संभव है .. मैं सोच रहा था ..
I thought this .. necessary to get posted - most dangrous and at times suicidal - is the expression of importance i.e. called the VIP SYNDROME .. by a person, who is ill .. as this makes the doctor .. to think and work under compulsion ..
बात पिछले दिनों की है कि मैंने कुछ चेहरे तैल-चित्र में बनाये थे . सभी काल्पनिक थे . उनमें से कुछ आकर्षक व कुछ तो किसी को भी (घर में) पसंद नहीं आ रहे थे . लेकिन ये चेहरे उत्पत्ति थे शायद मेरे अर्ध-चैतन्य चिंतन के .. और वैसे भी ये मेरा बस एक प्रयोग था . इस प्रयोग में जो चेहरे आकर्षक नहीं लग रहे था .. मेरा यकीन मानिये कि ये अनाकर्षक चेहरे कुछ लोगों को इतने पसंद आये कि उनने उसे ज़िद कर रख लिया . मैं सोच रहा था .. कि कोई किसी को नापसंद तो वही किसी को बेहद पसंद हो सकता है ..
कोई मुझे बतलाये कि सड़क पर चलते हुए .. ऐसा क्यों होता है कि कुछ चेहरे कभी अपनापन लिये हुए लगते हैं तो कुछ चेहरों को देखकर कभी अचानक घृणा के भाव उत्पन्न हो जाते हैं जबकि सचाई तो यह है कि कि अच्छे लगने वाले और अच्छे नहीं लगने वाले .. दोनो ही प्रकार के चेहरे .. पहले कभी भी देखे हुए नहीं होते हैं ..
क्या / पुर्नजन्म  / होता है  / मैं सोच रहा था ..
वो कह रहे थे - ज़िंदगी में तरक्की की यदि चाहत है तो शायद याद रखना जरूरी है कि सभी को सदैव परम आदरणीय, प्रातः स्मरणीय,अत्यंत सम्माननीय, अत्यंत विवेकशील, अत्यंत मृदु भाषी, अत्यंत पूजनीय, जैसे शब्द-अलंकरण से अलंकृत किया करो .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..
मेरी इस बात में दम तो है और ये सार्थक भी है कि दुनिया मैं सबसे महत्वपूर्ण आप हैं .. कोई किसी से कह रहा था .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था .. शायद यह चिंतन किसी बहस को आमंत्रित कर रहा था ..
गांव की पगडंडी में एक बैलगाड़ी चली जा रही थी और .. उसके नीचे एक चार पैर वाला जानवर भी चल रहा था .. चार पैर वाला वह जानवर सोच रहा था कि जैसे बैलगाड़ी वह खुद चला रहा है .. वो बता रहे थे .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..
अभिव्यक्ति / प्राकृतिक / अवयव / है ..
Where knowledge fails behaviour can handle the situation well .. मैं सोच रहा था ..
expression is a natural element ..
खुद को 
महान व अपराजित समझने का बीज
शायद अज्ञानता ही है ..
मैं सोच रहा था ..
हर महान आदमी में कोई न कोई असाधारण और असामान्य बात होती है यह जानकारी देने मात्र से - यह जानकारी देने वाला और असामान्य अभिव्यक्ति वाला कोई भी व्यक्ति महान नहीं हो जाता .. कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी हैं - जो विवादास्पद होना ही महानता की निशानी समझ बैठते हैं ..
कोई कैसे कह सकता है कि उसने लिखते समय कभी कोई गलती की ही नहीं है .. मैं सोच रहा था ..
कि
दर्पण को तोड़ देने से
चेहरा तो
नहीं बदल जाता
मैं सोच रहा था ..
never follow people who have achieved great heights .. But must follow those who hold you when you were falling from the heights .. LOYAL is always better than the ROYAL .. मैं पढ़ रहा था .. किसी का भेजा हुआ sms था .. मैं सोच रहा था ..
दृष्य एक -


एक – आइने का भला क्या दोष .. तुम्हारी तो सोच ही खंडित है ..
दूसरा – आइना टूटा हुआ है .. इसलिये तो आइने में चेहरा कई टुकड़ों में बट गया है .. यह कहकर उसने आइना बदल दिया और फिर आइने के सामने खड़े होकर अपने चेहरे को मुस्कराते हुए निहारने लगा ..

दृष्य दो -

एक - आइने को दोष मत दो .. जैसे हो वैसा ही तो दिखेगा .. अपनी शकल सुधारो .. कभी-कभी अकल का भी तो उपयोग कर लिया करो ..
दूसरा – पहले ने कपड़े से आइने के उपर की गर्द झाड़ दी और फिर आइने के सामने खड़े होकर अपने चेहरे को मुस्कराते हुए निहारने लगा ..
मैं देख रहा था .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..
कोई था
जो
कह रहा था
क्या नहीं है
जो
नहीं बिकता ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..

कोई कह रहा था ..
कला नहीं - दरअसल कलाकार बिकता है ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
किसी ने
मुझसे पूछा
कि
आपको
कौन सा रंग
सबसे ज्यादा पसंद है ..
मैं क्या जवाब दूं
मैं सोच रहा था ..
मैं सोच रहा था कि परिंदो का कौन सा धर्म होता होगा कि वे कभी उड़कर मंदिर पर तो कभी मस्जिद पर तो कभी उड़कर किसी चर्च पर तो कभी गुरद्वारे पर तो कभी किसी अन्य की मजहब की प्रार्थना-स्थली पर जा बैठते हैं ..
एक "साहब" ने किसी डाक्टर को "बुलवाया" .. जांचने के बाद डाक्टर ने कहा - सर .. कोई दिक्कत नहीं .. 'लोकल एनेस्थेशिया' में हो जायेगा .. डाक्टर ने अभी अपनी बात भी पूरी नहीं किया था कि "साहब" ने चिल्लाकर अपने पी.ए. और ड्रायवर को बुलाया और कहा - बाहर निकालो इसे .. किस गधे को ले आये हो .. ये तो 'लोकल' सामान की बात करता है .. कोई बता रहा था .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..
इंसान और जानवर में
क्या फर्क है .. ?
मैं सोच रहा था ..
प्रेरणा ( inspiration ) के लिये इर्द-गिर्द देखना और महसूस करना अर्थात् प्रकृति ( nature ) ही शायद पर्याप्त है –
बादलों से ढक गया सूरज
मतलब ..
मर तो नहीं गया
सूरज
मैं सोच रहा था ..
रोज की तरह आज भी
सुबह होते ही
लग गया हूं
फिर से
इंसानियत खोजने ..
मैंने देखा था

कई दिन पहले
एक रंगीन स्वप्न
और
अब भी
कुछ-कुछ याद आता है
धुंधले से
मुझे
ब्लेक एंड व्हाइट में
वो दृष्य
मैं सोच रहा था ..
लिखना तो
मैं भी चाहता हूं

अपनी
आत्म-कथा
लेकिन
हालात इजाजत नहीं देते
कि
जो सच है
वह मैं लिख नहीं सकता
और
आधारहीन
सोचना भी
मुझे
गवारा नहीं है
मैं सोच रहा था ..
कि
हल्के रंगो का
कोई
कैरेक्टर नहीं होता
कैनवास पर चित्र बनाते
मैं सोच रहा था ..
you may be not a very .. very hard worker and you may not be knowing more than the others but if you are capable of doing - पांच पैसे का काम करके पांच करोड़ की काबिलियत का डंका बजाना .. then you are a successful person .. this is the - todays theory of success ..
मुखौटों की प्रदर्शनी
देखते
मैं सोच रहा था
कि
इनकी
लोगों को
क्या जरूरत है ..
- हर महान आदमी में कोई न कोई असाधारण और असामान्य बात होती है कह देने मात्र से यह कहने वाला और असामान्य अभिव्यक्ति वाला कोई भी व्यक्ति .. महान नहीं हो जाता ..

- यदि कोई मुझे नहीं समझ सका तो इसमें दोष किसका है .. वो कह रहे थे .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..

Sunday, May 6, 2012

रोज की तरह
आज भी
सुबह होते ही
लग गया हूं
फिर से
इंसानियत खोजने ..

मैंने देखा था
कई दिन पहले
एक रंगीन स्वप्न
और
अब भी कुछ-कुछ याद आता है
धुंधले से
मुझे
ब्लेक एंड व्हाइट में
वो दृष्य ..
मैं सोच रहा था ..

Monday, April 16, 2012

मैं सोच रहा था ..

लिखना तो मैं भी चाहता हूं
अपनी आत्म-कथा
लेकिन
हालात इजाजत नहीं देते
कि
जो सच है
वह मैं लिख नहीं सकता
और
झूठी बातें

तो सोचना भी
मुझे
गवारा नहीं है
मैं सोच रहा था ..

expression of my unhappyness

I express my unhappyness for the unhealthy remarks as well the unhealthy taggings and the unhealthy expressions in words or in paintings or in the photographs
and also the unhealthy interpretation of simple conversations ..

मैं सोच रहा था ..

गांव की पगडंडी में एक बैलगाड़ी चली जा रही थी
और .. उसके नीचे एक चार पैर वाला जानवर भी चल रहा था ..
चार पैर वाला वह जानवर सोच रहा था कि जैसे बैलगाड़ी वह खुद चला रहा है ..
वो बता रहे थे ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..

मैं सोच रहा था ..

वे कह रहे थे - सूरज पूरब से निकलता है ..
लेकिन किसी तथाकथित महान ने सुनकर अत्यंत क्रोधित होकर कहा -
क्या फालतू बात करते हैं .. चुप रहिये .. जब आपको नहीं मालूम है .. आपको मालूम होना चाहिये कि सूरज न तो पश्चिम से और न ही उत्तर से और ना ही दक्षिण से उगता है ..
वह अदना सा व्यक्ति, सामने वाले के सम्मान में, संभवतः सामने वाले का लिहाज करता हुआ, क्रोधित चेहरे को देख रहा था ..
तथाकथित सर्वज्ञाता को प्रणाम कर वह लौट गया ..
वह लौट गया .. तो क्या हुआ ? किसी ने पूछा ..
फिर ..
फिर क्या मालूम क्या हुआ ..
क्योंकि शायद वह शुभचिंतक था इसलिये फिर पलटकर उन्हें क्रोधित करने नहीं जाना चाहता था ..
मैं भी वहां खड़ा था ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..

मैं सोच रहा था ..

वो कह रहे थे -
किसी के बारे में ..
कि देखो .. वे कितने महान हैं कि जब हमने महान कहते हुए, उनकी तारीफ करने लगे तो नतीजा यह निकला कि वे हमें ही बेवकूफ समझने लगे और फिर वे भूल गये कि वे दरअसल क्या हैं और महान कहने वाले को ही गुस्से से मूर्ख कहकर चुप रहने कह दिया ..
फिर ..
फिर क्या ..
वे महान ..
दरअसल तथाकथित महान व्यक्ति ..
मिलने वाले सम्मान को नहीं बचा पाये और फिर अकेले ही रह गये क्योंकि उनकी तारीफ करने वाले को तो उनने, अपने क्रोध से किनारे कर दिया था ..
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..

मैं सोच रहा था ..

वो कह रहे थे - ज़िंदगी में तरक्की की यदि चाहत है तो शायद याद रखना जरूरी है कि सभी को सदैव परम आदरणीय, प्रातः स्मरणीय,अत्यंत सम्माननीय, अत्यंत विवेकशील, अत्यंत मृदु भाषी, अत्यंत पूजनीय, जैसे शब्द-अलंकरण से अलंकृत किया करो .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..

Sunday, April 15, 2012

मैं सोच रहा था ..

1. बात पिछले दिनों की है कि मैंने कुछ चेहरे तैल-चित्र में बनाये थे . सभी काल्पनिक थे . उनमें से कुछ आकर्षक व कुछ तो किसी को भी (घर में) पसंद नहीं आ रहे थे . लेकिन ये चेहरे उत्पत्ति थे शायद मेरे अर्ध-चैतन्य चिंतन के .. और वैसे भी ये मेरा बस एक प्रयोग था . इस प्रयोग में जो चेहरे आकर्षक नहीं लग रहे था .. मेरा यकीन मानिये कि ये अनाकर्षक चेहरे कुछ लोगों को इतने पसंद आये कि उनने उसे ज़िद कर रख लिया . मैं सोच रहा था .. कि कोई किसी को नापसंद तो वही किसी को बेहद पसंद हो सकता है ..
इस पर किसी सज्जन ने कहा - उपर वाले ने ऐसी कोई चीज ही नहीं बनाई है कि जो हर किसी को नापसंद हो ..
2. कोई मुझे बतलाये कि सड़क पर चलते हुए .. ऐसा क्यों होता है कि कुछ चेहरे कभी अपनापन लिये हुए लगते हैं तो कुछ चेहरों को देखकर कभी अचानक घृणा के भाव उत्पन्न हो जाते हैं जबकि सचाई तो यह है कि कि अच्छे लगने वाले और अच्छे नहीं लगने वाले .. दोनो ही प्रकार के चेहरे .. पहले कभी भी देखे हुए नहीं होते हैं ..

necessary to get posted..

I thought this .. necessary to get posted -
most dangrous and at times suicidal - is the expression of importance i.e. called the VIP SYNDROME .. by a person, who is ill ..
as this makes the doctor .. to think and work under compulsion ..

Tuesday, April 10, 2012

मैं सोच रहा था ..

मेरे पास नहीं हैं
फिर भी
मैं
उसे
हर किसी को
बांटने के लिये तैयार हूं ..
कोई कह रहा था ..
मैं सोच रहा था ..
मैं सहमत था ..

कि, कोई शिकायत नहीं ..

मुझे तो
बंद घड़ी से भी
कोई शिकायत
नहीं है ..
मैं सोच रहा था ..
कि ..
वह भी तो 24 घंटे में
2 बार ..
सही समय
बतलाती है ..

हकीकत है .. कि

हकीकत है
कि
मेरे चारो तरफ ..
जिधर भी नजर घुमाता हूं ..
महान या अत्यंत महान ही
दिखलाई पड़ते हैं ..
मैं सोच रहा था ..
कि ..
सपने में भी
शायद ..
इसलिये
सभी का
स्तुति गान चालू रखता हूं ..

मेरी इन पंक्तियों को पढ़कर किसी ने कहा - कि आप तो डरपोक किस्म के मालूम पड़ते हैं .. सुनकर मैंने कहा - हुजूर .. कृपया 'किस्म' को हटा दीजिये और "बेहद" विश्लेषण जोड़ दीजिये .. क्योंकि .. मैं आपसे भी डरता हूं .. कि आप भी तो अत्यंत महान हैं ..

Friday, April 6, 2012

अमूर्त चित्र ..

acylic on canvas board
abstraction
by dr jsb naidu
10 x 12 inches
05 april 2012

एक्रेलिक चित्र ..

ये मेरा एक्रेलिक चित्र है जिसे मैंने दिनांक ०५ अप्रेल २०१२ को बनाया है ।

Wednesday, March 21, 2012

psychology ..

दो व्यक्ति नदी में डूब रहे हैं .. आप ऐसी स्थिति में हैं कि केवल एक को ही बचा पायेंगे तो आप किसे बचाना चाहेंगे – उसे जिससे आप बेइंतहा प्यार करते हैं या फिर उसे जो आपसे बेइंतहा प्यार करता है ..
मेरे इस सवाल का कई लोगों ने अलग-अलग तरह से जवाब दिया । कुछ तो सवाल पर ही बौखला गये थे और पूछ बैठे थे कि दोनो rivals एक ही स्थान पर और एक ही समय कैसे .. लोगों की मानसिकता को पढ़ने का यह भी एक तरीका था .. लेकिन मैंने महसूस किया कि अधिकांश थे जो - दोनो में से किसी को भी खोना नहीं चाहते था और शायद इसी वजह से कई ने तो कोई जवाब ही नहीं दिया तो कुछ सोचते हैं .. कहकर किनारा कर गये .. इक्का-दुक्का ही अपनी सोच को व्यक्त कर पाये थे .. तो कुछ ऐसे भी थे जो कारण बता नहीं पा रहे थे कि वे क्यों ऐसा करना चाहते हैं ..

Friday, January 20, 2012

सम्मान और अपमान ..

किसी को भी कमतर आकना ठीक नहीं .. किसी भी विषय पर अपने आप को ही सदैव उचित ठहराना उचित नहीं .. कोई आपका सम्मान करता है तो यह उसकी कोई कमजोरी नहीं हो सकती इसलिये बदले में उसे असम्मान देना .. यह भी उचित नहीं ..
कोई किसी को सम्मान देता है .. फिर उसकी वजह चोहे कोई भी हो तो यह उसका सौभाग्य है लेकिन .. मैंने यह महसूस किया है कि कभी ऐसा भी होता है कि यदि कोई किसी को सम्मान देते हैं और कारण चाहे कोई भी हो तो सम्मान प्राप्त करने वाला सम्मान देने वाले का निरादर करने लगता है और उसे यह गलतफहमी हो जाती है कि केवल वह ही है जो सर्वत्र जानकार है और बाकी सभी मूढ़-मति ।
जिस तरह से गर्मी में स्वेटर असंगति है ठीक उसी तरह कोई किसी ऐसे विषय पर जिसके बारे में उसे खास जानकारी नहीं हैं अपनी राय देते हुए यह कहे कि वह ही सही हैं और वह भी उस व्यक्ति से जो उस विषय पर सिदध-हस्त है .. और फिर रूके भी नही और झल्लाते हुए व लगभग चीखते हुए कहे कि सामने वाला विषय-सिद्ध-हस्त गलत है .. उसे कुछ भी नहीं मालूम .. और ऐसा इसलिये कि उसने टोककर सही स्थिति से अवगत कराने की कोशिश की । इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं – एक तो यह कि वह आइंदा .. अमुक के सम्मान में, नाराज नहीं करने का सोच कर सही स्थिति नहीं बतायेगा .. व दूसरा कि अमुक भविष्य में न केवल वंचित रह जायगा सही जानकारी से बल्कि सम्मान के बदले में प्राप्त अपना अपमान, हो सकता है कि कमजोर होने की स्थिति में अमुक को अकेला छोड़ दे ।
यहां इतना कह देना पर्याप्त नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति .. फिर वजह चाहे कोई भी हो लेकिन स्वस्थ मानसिकता का परिचायक नहीं है .. और अपने वक्त के प्रभाववश उत्पन्न इस स्थिति का कालांतर में कोई सामाजिक दुष्परिणाम हो इतना ही पर्याप्त नहीं है अमुक को अवसाद की स्थिति में भी ले जा सकता है ।

Friday, January 13, 2012

मैं सोच रहा था ..

चाहे कोई कविता की पंक्तियां हो या कोई लेख या फिर कोई पेंटिंग हो या फिर कोई चेहरा ही क्यों न हो .. सभी एक समान ही स्थितियां हैं .. किसी को कुछ तो किसी को कुछ अच्छा लगता है ..