Sunday, April 15, 2012

मैं सोच रहा था ..

1. बात पिछले दिनों की है कि मैंने कुछ चेहरे तैल-चित्र में बनाये थे . सभी काल्पनिक थे . उनमें से कुछ आकर्षक व कुछ तो किसी को भी (घर में) पसंद नहीं आ रहे थे . लेकिन ये चेहरे उत्पत्ति थे शायद मेरे अर्ध-चैतन्य चिंतन के .. और वैसे भी ये मेरा बस एक प्रयोग था . इस प्रयोग में जो चेहरे आकर्षक नहीं लग रहे था .. मेरा यकीन मानिये कि ये अनाकर्षक चेहरे कुछ लोगों को इतने पसंद आये कि उनने उसे ज़िद कर रख लिया . मैं सोच रहा था .. कि कोई किसी को नापसंद तो वही किसी को बेहद पसंद हो सकता है ..
इस पर किसी सज्जन ने कहा - उपर वाले ने ऐसी कोई चीज ही नहीं बनाई है कि जो हर किसी को नापसंद हो ..
2. कोई मुझे बतलाये कि सड़क पर चलते हुए .. ऐसा क्यों होता है कि कुछ चेहरे कभी अपनापन लिये हुए लगते हैं तो कुछ चेहरों को देखकर कभी अचानक घृणा के भाव उत्पन्न हो जाते हैं जबकि सचाई तो यह है कि कि अच्छे लगने वाले और अच्छे नहीं लगने वाले .. दोनो ही प्रकार के चेहरे .. पहले कभी भी देखे हुए नहीं होते हैं ..

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