दृष्य एक -
एक – आइने का भला क्या दोष .. तुम्हारी तो सोच ही खंडित है ..
दूसरा – आइना टूटा हुआ है .. इसलिये तो आइने में चेहरा कई टुकड़ों में बट गया है .. यह कहकर उसने आइना बदल दिया और फिर आइने के सामने खड़े होकर अपने चेहरे को मुस्कराते हुए निहारने लगा ..
दृष्य दो -
एक - आइने को दोष मत दो .. जैसे हो वैसा ही तो दिखेगा .. अपनी शकल सुधारो .. कभी-कभी अकल का भी तो उपयोग कर लिया करो ..
दूसरा – पहले ने कपड़े से आइने के उपर की गर्द झाड़ दी और फिर आइने के सामने खड़े होकर अपने चेहरे को मुस्कराते हुए निहारने लगा ..
मैं देख रहा था .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..
एक – आइने का भला क्या दोष .. तुम्हारी तो सोच ही खंडित है ..
दूसरा – आइना टूटा हुआ है .. इसलिये तो आइने में चेहरा कई टुकड़ों में बट गया है .. यह कहकर उसने आइना बदल दिया और फिर आइने के सामने खड़े होकर अपने चेहरे को मुस्कराते हुए निहारने लगा ..
दृष्य दो -
एक - आइने को दोष मत दो .. जैसे हो वैसा ही तो दिखेगा .. अपनी शकल सुधारो .. कभी-कभी अकल का भी तो उपयोग कर लिया करो ..
दूसरा – पहले ने कपड़े से आइने के उपर की गर्द झाड़ दी और फिर आइने के सामने खड़े होकर अपने चेहरे को मुस्कराते हुए निहारने लगा ..
मैं देख रहा था .. मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..
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