Sunday, March 6, 2011

अहंकार ..

बहुत खुश होकर अपनी कविताओं की पहली पुस्तक लेकर वह नवोदित कवि उनके पास गया था । वे एक स्थापित साहित्यकार थे । उनके प्रति यथोचित से ज्यादा सम्मान का प्रदर्शन वह कर रहा था और बड़े शान से उसने अपनी वह पुस्तक उनके सामने रखी । पुस्तक के दो-चार पन्ने लापरवाही से पलटने व पुस्तक की दो-चार कविताओं पर एक नजर डालकर वे उस नवोदित कवि से मुखातिब हुए और उसकी ओर कुछ इस तरह से देखा कि स्पष्ट लग रहा था कि उनके इस तरह से देखने से अचानक ही अब जैसे वह गंभीर अपराध-बोध से ग्रसित हो गया हो । वह चुपचाप खड़ा रहा । उसे बैठने के लिये भी नहीं कहा गया । किताब पर वे अब बोले – ठीक है .. लेकिन .. चलिये ठीक है .. । सुनकर वह अब शायद चुपचाप निकल जाने में ही भलाई समझा और जी बहुत-बहुत धन्यवाद कहते हुए वहां से चला गया ।
मैंने उसके जाने के बाद उनसे केवल यह कहा – कि शायद परिपक्वता वक्त के साथ आती है .. फिर हंसते हुए आगे कहा – बछड़े और गाय में अंतर तो होता ही है .. और वह भी कह बैठा जो मुझे उनसे नहीं कहना चाहिये था – कि बच्चों में देखो कितनी फ्लेक्सीबिलीटी होती है और बूढ़े होते-होते शरीर में अकड़न बढ़ जाती है । वे शायद मेरा आशय समझ चुके थे ।

मैं अब उठा और मेरा यकीन मानिये कि दुबारा मैं आज तलक उनके पास नहीं गया । उसके बाद वह नया लेखक अपनी कई किताबें प्रकाशित कर चुका लेकिन उसने कभी पलटकर इन स्थापित साहित्यकार की ओर अपना रूख नहीं किया । निश्चित रूप से उन्होने अपने शुभचिंतकों की दो कतारें तो खो दी थी .. ।
मैं उस वक्त के उस नये लेखक को नाम व सूरत दोनो से पहचानता हूं लेकिन उन्हें शायद यह गुमान भी नहीं होगा कि मैं उनकी श्रद्धा और तिरस्कार व अहम् के सिलसिले का साक्षी था ।

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