Saturday, March 19, 2011

मैं सुन रहा था .. मैं सोच रहा था ..

कुछ .. आपस में बातें कर रहे थे ..
एक - moral values .. नैतिकता .. जैसे शब्द तो ऐसा लगता है कि सिमट कर रह गये हैं अब केवल किताबों में ..
दूसरा - व्यवहार से तो ऐसे गायब हो गये हैं कि जैसे गधे के सिर से सिंग .. ।
तीसरा – रूपये-पैसे की भाषा में .. ये नैतिकता और ये moral values जैसे शब्दों का उपयोग तो ऐसा लगता है कि जैसे आप किसी गधे के सिर पर सिंग की कल्पना कर रहे हों ।
चौथा - बेचारा गधा .. ये बुद्धिमान लोग .. इस सीधे-सादे प्राणी के बारे में न जाने क्यों पड़े रहते हैं ।
पांचवा – काजी जी काहे को दुबले .. तो .. मालूम हुआ .. दुनिया का अंदेशा .. । यार छोड़ो .. फिजूल .. अपना समय क्यों बर्बाद करें .. आओ .. चाय पी लें .. चाय ठंडी हो रही है .. ।
मैं सुन रहा था ..
मैं सोच रहा था ..

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